Ambedkarvaad: जाति एक अंधविश्वास क्यों है?
अंबेडकरवादी दृष्टिकोण से यह लेख जाति व्यवस्था को एक अंधविश्वास के रूप में विश्लेषित करता है। विज्ञान, तर्कवाद और मानवीय समता के आधार पर यह लेख बताता है कि जाति का कोई जैविक या नैसर्गिक आधार नहीं है। भारतीय समाज में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति, उसके अंधविश्वासी कारण, और उससे होने वाली सामाजिक क्षति का विश्लेषण करते हुए लेख यह स्पष्ट करता है कि जाति केवल एक सामाजिक साजिश है, जो सामाजिक और आर्थिक शोषण का साधन बनी रही है। लेख का उद्देश्य है – वैज्ञानिक और तर्कसंगत सोच को बढ़ावा देकर जातिवादी अंधविश्वास को समाप्त करना।
Ambedkarvaad: जातीव्यवस्था विज्ञान से कैसे झूट शाबीत होती हैं?
(Ambedkarvaad अंबेडकर जयंती 2025 विशेष लेख 4)
(डॉ. नितीन पवार, संपादक ,सत्यशोधक न्युज, पुणे )
Ambedkarvaad जाती व्यवस्था को अनैसर्गिक एवं विज्ञान विरोधी ही मानता है| जाती केवल एक दुनिया की सबसे बडा और सबसे लंबा चला एक अंधविश्वास हैं| ये सहज रुपसे शाबीत हो सकता है अगर भारतीयों का एक बडा जेनेटिक स्टडी किया जाये तो | इसी विषय पर हे लेख हम लिख रहें हैं ।
जाती केवलमात्र अंधविश्वास !—
भारतीय समाज में जाति व्यवस्था सामाजिक संरचना मानी जाती है।ये सदियों से भारत के समाज के अंदर अस्तित्व में है। हालाँकि अब आधुनिक विज्ञान, मानवतावाद,विवेकवाद एवं तर्कवादसे इसके संबंध में विचार किया जाये तो देखा जाता है की ये केवलमात्र अंधविश्वास हैं । विज्ञान के दृष्टिकोन से देखा जाये तो जन्म से कोई भी श्रेष्ठ या कनिष्ट नहीं होता है| सबकी पाटी जन्म के बाद पहले साफ होती है|बाद में उसपर सब कुछ समय,स्थल,परिवार और फैला हुआ समाज लिख देता है। यांनी हमारी मेमरी में डेटा भरा जाता है। जैसे AI में मशिन लर्निंग किया जाता है,वैसै इन्सान को प्रत्येक अप्रत्यक्ष रुप से सिखाया जाता है| मतलब य मेनमेड चीज हैं। नैसर्गिक नहीं है |
जाति व्यवस्था भारत और पडोसी देशों में सामाजिक असमानता का एक दुष्चक्र बना है|आज भी ये अज्ञानता एवं अंधविश्वास के कारण कायम है।
भारत में जाति व्यवस्था की अंधविश्वासी जड़ें कौन सी हैं? —-
पूर्व जन्म का एवं कर्म का सिद्धांत –
लोग बडे पैमाने पर मानते हैं कि व्यक्ति का जन्म उसके पिछले जन्मों के कर्मों से निश्चित होता है। इस अंधविश्वास उपयोग करके कुछ जातियों को श्रेष्ठ तो कुछ जातियों को निम्न दर्जे का बताने के लिए इतिहास काल में किया गया। लेकिन विज्ञान द्वारा परीक्षण करने पर यह अंधविश्वास निकलता है।
ईश्वर की इच्छा या नियति एक कारण –
कुछ लोग मानते हैं कि किसी भी समाज में उच्च और निम्न पद ईश्वर द्वारा निर्माण होता हैं। लेकिन किसी भी धार्मिक ग्रंथ में जाति व्यवस्था जैसी कोई व्यवस्था मिलती नहीं हैं । इसका का कोई स्पष्ट और न्यायोचित आधार नहीं मिलता है। इसके विपरीत भारत और विश्व के अनेक संतों तथा गुरुओं ने, समाज सुधारकों ने असमानता का संदेश नहीं दिया है।
भारतीय समाज की संस्कृति एवं परंपरा –
जाति के बारे में इंसान को उसके बचपन से ही सिखाया जाता है|बल्की उसे एक व्यक्ति की अपरिवर्तनीय पहचान के रूप में सिखाया और स्थापित किया जाता है। लेकिन यह परंपरा झूठी और अवैज्ञानिक मान्यताओं के आधार पर अस्तित्व मैं है | इस प्रकार से जाति व्यवस्था कायम चलती रखती है।
जाती में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव – जाति किसी वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित नहीं है। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर बताते हैं, “जाति एक बंद वर्ग व्यवस्था है।” मतलब यह सामाजिक वर्गों का कृत्रिम तर आके से विभाजन है | इसका कोई जैविक या नैसर्गिक आधार नहीं पाया जाता है।
मानव समानता –
आधुनिक मनोविज्ञान एवं मानवशास्त्र दिखाता है कि सभी मनुष्य समान हैं।एकरुप नहीं है|झेराक्स कापी नहीं है | लेकिन जन्म के आधार पर व्यक्ति की जाति ,उसकी बुद्धि, उसकी योग्यता या उसका स्वभाव निश्चित नहीं होता है| जन्म के बाद व्यक्ति कई चिजों से प्रभावित होता है।
एक साजिश परंपरागत रुप से—-
आर्थिक स्तर को एवं सामाजिक असमानता बनाए रखने की एक साजिश परंपरागत रुप से चली आयी है| जाति व्यवस्था का उपयोग कुछ समूहों को आतिरीक्त शक्ति धन देने के लिए किया गया था। “वह निश्चित रुप से सामाजिक,आर्थिक शोषण की व्यवस्था बन गयी| जो अंधविश्वास के आधार पर ही चलती आयी है।
जाति व्यवस्था के अंधविश्वास के कारण समाज की होने वाली क्षति—-
जाती के कारण सामाज बिखर जाता है ।समाज में दलित,शोषित ,पिछडे समुदाय सदियों से शिक्षा, विकास,मानवी अधिकार से वंचित रह गये।जातिगत बंधनों के कारण प्रतिभाशाली लोगों को अवसर मिल नहीं पाताळ है|नैसर्गिक मानवी इच्छा और विवाह की परंपरा से करने की पद्धती के कारण घरेलू,गावमें,मोहल्ले में हिंसा और नफरत में वृद्धि होती हुई दिखाई देती है।
Achievements
जाति एक अंधविश्वास है तो इसका समाधान आखिर क्या है?—-
• तर्कसंगत सोच अपनाने को शिक्षा निती और पाठ्यक्रम में शामिल करना जरुरी है| लोगों को जाति व्यवस्था की वैज्ञानिक जांच करने को सिखाया जाना पाठ्यक्रम का एक हिस्सा करना चाहिए | तर्कसंगत सोच अपनाने पर भी पाठ्यक्रम में जोर देना पडेगा|
• सभी को समान शिक्षा और सभी कार्योंका समान अवसर देना जरुरी है | यदि सभी को शिक्षा और समान अवसर प्राप्त होंगे तो जाति आधारित असमानता कम करने ये सहायक साबीत हो सकती है।
• संविधान और कानूनों का उचित अनुप्रयोग – भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को जो समान अधिकार दिए हैं। उसको समझने में जाति का अंधविश्वासी एक रुकावट बनाई हुआ है|ये समझाने से समाज अधिक न्यायपूर्ण और समतावादी बनेगा।
समारोप—-
जाति निश्चीत एक अंधविश्वास है| क्योंकि इसका कोई वैज्ञानिक, तार्किक या मानवीय आधार मिलता नहीं है। भारत के समाज की समग्र प्रगति एवं सच्ची लोकतंत्र के लिए जाति व्यवस्था का अंत होना एक पुर्वआपुर्ती हैं | इसीलिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं, “यदि जाति समाप्त नहीं की गई तो लोकतंत्र सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा।”
जाति व्यवस्था के ही अंधविश्वासों को खुदमें से निकालना पहली आवश्यकता है| वही सच्चा सामाजिक परिवर्तन की दिशा में आंदोलन होगा| पहला कदम होगा।
डॉ. नितीन पवार (D.M.S. – Management)
पत्रकार, संपादक, लेखक, ब्लॉगर व मानव अधिकार कार्यकर्ते.
शिरूर (पुणे) येथील रहिवासी.
सत्य, निष्पक्ष आणि समाजाभिमुख पत्रकारितेद्वारे ग्रामीण भागाचा आवाज बुलंद करण्यासाठी कार्यरत.
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