अमेरिकन सरकार ओशो के पीछे क्यों पड़ी थी? | असली वजह जानिए. …
अमेरिकन सरकार ओशो के पीछे क्यों पड़ी थी?
जानिए क्यों ओशो जैसे शांतिप्रिय और क्रांतिकारी विचारक को अमेरिकी सरकार ने खतरा माना। रजनीशपुरम, बंदूकें, विचारधारा एवं अमेरिकी डर के पीछे की पूरी सच्चाई यहां पढें आज...
अमेरिकन सरकार ओशो के पीछे क्यों पड़ी थी? | असली वजह जानिए. …
धर्म मार रहा है बच्चों को?
“धर्म बच्चों को मार रहा है… राजनीति भी!” — ओशो
अमेरिकन सरकार ओशो के पीछे क्यों पड़ी थी? तो पढे आगे क्यों पड ई ली? ओशो का जिनका असली नाम रजनीश चंद्र मोहन था|वो एक ऐसे क्रांतिकारी विचारक थे जिन्होंने धर्म, राजनीति, समाज एवं सेक्स जैसे विषयों पर खुलकर बात करने का साहस किया । उनकी बातों में उच्च स्तर की बौद्धिकता थी| स्वतंत्रता थी, विद्रोह था एवं एक नई दृष्टि थी | जो उस समय की पारंपरिक सोच से टकराई थी।
ओशो क्यों खतरनाक माने गए?—-
ओशो की स्पष्टवादिता, नयी सोच एवं उनके अनुयायियों का बढ़ता हुआ विश्व स्तर पर प्रभाव उस वक्त के अमेरिकन सरकार को असहज कर रहा था।ओशो वह व्यक्ति जो न हिंसा के पक्ष में थे, न किसी संगठन के पक्ष में, फिर भी पूरी अमेरिकी सरकार उसके पीछे क्यों पड़ी थी ? यह सवाल आज भी बना रहा है।
इस सवाल जवाब ओशो की विचारधारा में छुपा है।—-
ओशो कहते थे, “नई बातें, क्रांतिकारी विचार और बौद्धिकता से भरा हुआ आदमी उस समय के लोगों को बहुत खतरनाक लगता है।”
ओशो के रजनीशपुरम की कहानी—-
1981 में ओशो अमेरिका के ओरेगन राज्य में एक विशाल आश्रम /commune की स्थापना करने के उद्देश्य से पहुँचे। उन्होंने ‘रजनीशपुरम‘ नाम का ‘ कम्यून’ बनाया । वहां उनके हजारों अनुयायी (ज्यादातर यूरोप, खासकर जर्मनी एवं इटली से) टेंट एवं कंटेनरों में रहकर तपस्या करने लगे थे।
यह कम्यून तेज गती से फैल रहा था | अनुयायियों की संख्या बढ़ती जा रही थी| अमेरिकी स्थानीय प्रशासन की नजरें इस पर टिकने भी लगीं। एक गलत बात हो गई थी। ओशो को एक हिंदू धार्मिक प्रचारक समझा गया|लेकिन उनकी विचारधारा पारंपरिक धर्म से बिल्कुल हटकर थी।
बंदूकें एवं डर का माहौल—
अमेरिकनन सरकार को शक हुआ कि ओशो के अनुयायी कम्यून में हथियार जमा कर रहे हैं। यह सच था कि सुरक्षा के लिए कुछ बंदूकें वहां थी। लेकिन उनका दुरुपयोग एक बार भी नहीं हुआ। फिर भी इस कारण से पूरे कम्यून को “संभावित खतरा” माना गया।
ओशो के अनुयायियों में अधिकांश जर्मन एवं इटालियन थे |वो हर काम में अत्यंत सक्रिय थे। वे वहाँ खेतों में काम करने लगे | घर बनाए और एक स्वतंत्र commune society बसाई थी। ये सब एक नजर से ‘अलग देश‘ की तरह लगने लगा था |ये बात अमेरिकी राजनीतिक एवं धार्मिक व्यवस्था को चुनौती देने जैसा प्रतीत हुआ।
अमेरिकन सरकार की सोच बनाम ओशो की सोच—-
अमेरिकन सरकार बनाम ओशो!
ओशो अमेरिका को ध्यान एवं आत्म-शुद्धि का मार्ग दिखाना चाहते थे। उन्होंने कभी भी हिंसा का समर्थन नहीं किया था| लेकिन अमेरिकी समाज जो भौतिकता में पुरा डूबा हुआ था, वो उनके विचारों को आत्मसात नहीं कर सका।
आज स्थिति यह है कि अमेरिका में स्कूल के बच्चेरिवॉल्वर चला रहे हैं । आत्महत्याएं बढ़ रही हैं । मानसिक बीमारियाँ आम हो गई हैं। ओशो ने इन समस्याओं को बहुत पहले समझा था और चेतावनी दी थी।
भारत छोड़कर अमेरिका क्यों गये ?—-
बहुत लोग पूछते हैं कि ओशो भारत छोड़कर अमेरिका क्यों गए?सच्चाई यह है कि ओशो भारत में सासवड के पास एक किले के परिसर में जमीन खरीदना चाहते थे। गुजरात के कच्छ में भी उन्होंने जमीन देखी थी। लेकिन भारत में प्रशासनिकबाधाएं एवं राजनीतिक हस्तक्षेप हो गये | वहीं अमेरिका की वैज्ञानिक सोच, खुलापन एवं संसाधन उन्हें वहाँ ले गये।
ओशो एवं सेक्स पर खुलकर चर्चा—–
ओशो ने सेक्स को कभी पाप नहीं बल्कि बुनियादी प्राकृतिक प्रक्रिया कहा है।उनका मानते थे कि जैसे दांत, कान, आंखें शरीर का हिस्सा हैं, वैसे ही सेक्स भी है।सेक्स को जबरदस्ती दबाना एक बीमारी है। पाप है। ब्रह्मचर्य अगर स्वाभाविक रूप से आता है, तो वह सुंदर भी है।उनके इस तरह के खुलेपन के विचार जो सत्य है। वो पारंपरिक धार्मिक नेताओं एवं राजनीतिज्ञों को परेशान कर रहे थे।
गरीबी, धर्म एवं राजनीति पर ओशो के विचार––
ओशो मानते थे कि —
ओशो संदेश !
• “गरीबी एक कैंसर है, इसका उदात्तीकरण नहीं किया जा सकता।”
• उनका मानना था कि दुनिया से गरीबी खत्म हो सकती है अगर टैक्स सिस्टम की सीमाएं तोड़ी जाती है ।
• देशों की सीमाएं, राजनेता एवं पुरोहित लोग आम जनता को मार रहे हैं।
• पैलेस्टाइन में बच्चे पानी के अभाव में मर रहे हैं, और दुनिया देख रही है। यह आज की ताजा स्थिती है|
एक वैश्विक समाज की कल्पना थी ओशो की —
ओशो का एक सपना था वैश्विक व्यवस्था का ! जहाँ सीमाएं ना हों, जात-पात ना हो, धर्म-राजनीति के नाम पर खून खराबा ना हो।
आज इंटरनेट एवं विज्ञान ने लोगों को नजदिक ला दिया है। यह ओशो की भविष्यवाणी धीरे-धीरे साकार भी हो रही है। ताजा ट्रंफ का टेरिफ क्रायसेस बता रहा है की दुनिया कुछ ‘अलग‘ चाहती है !
समारोप–
क्या अमेरिका ओशो को समझेगा?
ओशो ने पहले ही कहा था, “अमेरिकन लोग आने वाले वर्षों में मुझे समझेंगे।”और यह सच साबीत होता दिखाई दे रहा है। अब अमेरिका एवं दुनिया भर में ओशो के अनुयायियों की संख्या करोड़ों में है। उनका ध्यान, ध्यान-संगीत एवं विचारधारा लोगों को आंतरिक शांति की ओर ले जा रही है।
तो अमेरिकी सरकार ओशो के पीछे क्यों पड़ी थी? क्योंकि वे वैसी व्यवस्था को चुनौती दे रहे थे जो लोगों को गुलाम बनाए रखी थी — धर्म के नाम पर, राजनीति के नाम पर, एवं हिंसा के नाम पर।
डॉ. नितीन पवार (D.M.S. – Management)
पत्रकार, संपादक, लेखक, ब्लॉगर व मानव अधिकार कार्यकर्ते.
शिरूर (पुणे) येथील रहिवासी.
सत्य, निष्पक्ष आणि समाजाभिमुख पत्रकारितेद्वारे ग्रामीण भागाचा आवाज बुलंद करण्यासाठी कार्यरत.
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