Ambedkarvaad:अंबेडकरजी ने बौद्ध धर्म क्यों चुना ?तथा वे कौन से वो कारण हैं की बाबासाहेब अंबेडकरजी 'ने बौद्ध धर्म/धम्म को अपनाया? इस सवाल का जबाब ढुंढने का हम प्रयास इस लेख में करते है !
Ambedkarvaad:कौन से कारण हैं की बाबासाहेब अंबेडकरजी ‘ने बौद्ध धर्म/धम्म को अपनाया?
(‘अंबेडकर जयंती 2025′ के अवसर पर यह लेख ,’#सत्यशोधकन्युज’ के संपादक #डॉनितीनपवार ने हमारे पाठक एवं सबके लिए लिखा है)
Ambedkarvaad:अंबेडकरजी ने बौद्ध धर्म क्यों चुना ?तथा वे कौन से वो कारण हैं की बाबासाहेब अंबेडकरजी ‘ने बौद्ध धर्म/धम्म को अपनाया? इस सवाल का जबाब ढुंढने का हम प्रयास इस लेख में करते है !
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक समाज सुधारक , संविधान निर्माता तो थे ही |पर एक आध्यात्मिक/धार्मिक विचारक भी थे। बाबासाहेब ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर बौद्ध धर्म को स्विकार किया |अपने लाखों अनुयायी के साथ शांतिपूर्ण रुप से बौद्ध धर्म की सामुहिक दिक्षा ली। यह उनका फैसला एक धार्मिक परिवर्तन नहीं था ही | पर एक सामाजिक क्रांति का फैसला भी था।
बाबासाहेब अंबेडकर एवं हिंदू समाज का स्थायीभाव जातीआधार पर भेदभाव—-
बाबासाहेब अंबेडकर ने अपने जीवनभर जाति व्यवस्था एवं अस्पृश्यता का तीव्र रुप से विरोध करते रहे। ‘जातीअंत‘ का उनका आंदोलन था| ना की जाती की अस्मिता का संवर्धन करना |बाबासाहेब अंबेडकरजी ने कहा था , “मैं हिंदू के रूप में पैदा जरूर हुआ हूँ, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।”बाबासाहेब अंबेडकरजी मानते थे कि हिंदू धर्म में जातिवाद गहरे रुप में अस्तित्व में हैं। और उसमें समानता लाना केवल असंभव हैं। यह अवस्था आज भी वैसी की वैसी हैं।
इसका प्रमुख कारण बुद्ध के विचार में अहिंसा, करुणा, समानता,तर्कशिलता और भारतीयत्व था|और किसी देश में निर्माण हुआ धर्म भारतीय संस्कृती से मेल नहीं खायेगा|भारतीय उस वक्त ऐसे किसी धर्म में शामिल होना नहीं चाहेंगे| दलित भी ! इसलिए बाबासाहेब अंबेडकर को बुद्ध अत्यंत प्रिय थे।बाबासाहेब अंबेडकरजी ने बौद्ध धर्म में एक वैज्ञानिक, तर्कसंगत एवं समानता आधारित धर्म पाया।बाबासाहेब अंबेडकरजी को बौद्ध धर्म में नैतिकता, सामाजिक न्याय दिखा| जिसकी वे जीवन भर तलाश करते रहे थे।
नागपुर में बाबासाहेब अंबेडकरजी ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली—–
Ambedkarvaad: क्या हैं सार?
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में डॉ.बाबासाहेब अंबेडकरजी ने अपनी पत्नी सविता अंबेडकर एवं लगभग 5 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। उसे अपने जीवनमार्ग के रुप में अपनाया ।यह ऐतिहासिक घटना “धम्म दीक्षा आंदोलन” कही जाती है।उस वक्त उन्होंने कहा, “आज मैं उस धर्म में प्रवेश कर रहा हूँ जो समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा सिखाता है।”
बाबासाहेब अंबेडकरजी ने दी 22 प्रतिज्ञाएँ—-
नागपुर बौद्ध धर्म दीक्षा के समय बाबासाहेब अंबेडकरजी ने अपने इन नये बौद्ध अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दी।इन प्रतिक्षाओं में जातिवाद, ब्राह्मणवाद, देवी-देवताओं की पूजा इ. का त्याग कर बुद्ध, धम्म और संघ में आस्था प्रकट हुई दिखाई देती है।ये 22 प्रतिज्ञाएँ केवल धार्मिक प्रतिक्ज्ञा नहीं थी| सामाजिक एवं मानसिक स्वतंत्रता की बुनियाद थीं।
बिलकुल! डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म दीक्षा के समय अपने अनुयायियों को “22 प्रतिज्ञाएँ” (बाईस प्रतिज्ञा) दिलवाई थीं। ये केवल धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक और मानसिक क्रांति का घोष था।
Ambedkarvaad: बाबासाहेब अंबेडकर ने दी 22 प्रतिज्ञाएँ!
1. मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भगवान नहीं मानता।
2. मैं राम और कृष्ण को भगवान नहीं मानता।
3. मैं गौरी, गणपति आदि हिंदू धर्म के किसी भी देवी-देवता को नहीं मानता।
4. मैं ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो सृष्टि का निर्माता है।
5. मैं यह नहीं मानता कि भगवान बुद्ध अवतार थे।
6. मैं यह नहीं मानता कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे।
7. मैं पूजापाठ नहीं करूँगा।
8. मैं ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ नहीं करूँगा।
9. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ।
10. मैं समानता स्थापित करने के लिए प्रयास करूँगा।
11. मैं बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपनाऊँगा।
12. मैं बुद्ध की आठ अंगों वाली आर्य अष्टांगिक मार्ग का पालन करूँगा।
13. मैं बुद्ध की दस पारमिताओं का पालन करूँगा।
14. मैं बुद्ध के धम्म का प्रचार करूँगा।
15. मैं हिंसा नहीं करूँगा।
16. मैं चोरी नहीं करूँगा।
17. मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
18. मैं व्यभिचार नहीं करूँगा।
19. मैं शराब या नशीली चीजें नहीं लूँगा।
20. मैं बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करूँगा।
21. मैं पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता।
22. मैं यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं बौद्ध धर्म को छोड़कर किसी भी अन्य धर्म में वापस नहीं जाऊँगा।
नवबौद्ध/नवयान आंदोलन की शुरुआत—
बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद देश में ‘नवबौद्ध‘ की शुरूवात हुई |लाखों दलित,शोषित,अछुत समुह उनके मार्ग पर चलने लगे|आज भी यह सिलसिला शुरु है|आज भी सच्चे बाबासाहेब अंबेडकर के अनुयायी बुद्ध के मार्ग को सामाजिक न्याय का और आध्यात्मिक मुक्ती का मार्ग मानते हैं।
समारोप —
डॉ.बाबासाहेब अंबेडकर का बौद्ध धर्म की ओर झुकाव सिर्फ एक धार्मिक पहलू नहीं हैं|वो सामाजिक जागृति की क्रांति भी हैं। बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म के माध्यम से समाज में उपस्थित शोषितों को आत्मसम्मान एवं स्वतंत्रता का मार्ग दिखाया। यह परिवर्तन आज भी लाखों करोडो लोगों को प्रेरणा देता है।
डॉ. नितीन पवार (D.M.S. – Management)
पत्रकार, संपादक, लेखक, ब्लॉगर व मानव अधिकार कार्यकर्ते.
शिरूर (पुणे) येथील रहिवासी.
सत्य, निष्पक्ष आणि समाजाभिमुख पत्रकारितेद्वारे ग्रामीण भागाचा आवाज बुलंद करण्यासाठी कार्यरत.
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