
Contents
- 1 मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनगणना का निर्णय क्यों लिया?एक विश्लेषण!
- 1.1 मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनगणना का निर्णय क्यों लिया?:राजनीतिक दांवपेंच या जातीव्यवस्थागत असमानता का स्विकार?
- 1.1.1
- 1.1.2 लेखक -डा.नितीन पवार,संपादक, सत्यशोधक न्युज, पुणे.
- 1.1.3 जातिनिहाय जनगणना क्या है?
- 1.1.4 मोदी सरकार ने यह निर्णय क्यों लिया?—-
- 1.1.5 विपक्ष की प्रतिक्रियाएं क्या आई है?—
- 1.1.6 समर्थन तथा आलोचना दोनों निकले है—
- 1.1.7 संभावित प्रभाव क्या होंगे? —-
- 1.1.8 आम जनता की दृष्टि से क्यों जरूरी है यह निर्णय?—
- 1.1.9 चुनौतीपूर्ण पैलू कौन से है?—
- 1.1.10 निष्कर्ष क्या निकलते है?—
- 1.1.11 About The Author
- 1.1 मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनगणना का निर्णय क्यों लिया?:राजनीतिक दांवपेंच या जातीव्यवस्थागत असमानता का स्विकार?
मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनगणना का निर्णय क्यों लिया?एक विश्लेषण!
मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनगणना का निर्णय क्यों लिया?:राजनीतिक दांवपेंच या जातीव्यवस्थागत असमानता का स्विकार?
लेखक -डा.नितीन पवार,संपादक, सत्यशोधक न्युज, पुणे.
मोदी सरकार ने जातिनिहाय जनणना का निर्णय क्यों लिया?यह सवाल साशंकतासे भरा हुआ है।भारत में बहुत सारी जातीया हैं। बिना जाती बताये व्यक्ती की पहचान पुरी नहीं होती.ये बहुत पुराना सामाजिक रोग लिए यहां का समाज जिता हैं। भारत देश में जातिनिहाय जनगणना (Caste Census) एक संवेदनशील एवं चर्चित मुद्दा हमेशा रहा है। जब मोदी सरकार ने इस जनगणना को मंज़ूरी देने का ऐलान कर दिया है। इससे राजनीति के गलियारों से लेकर आम जनता के बीच बडी हलचल मच गई हैं। । यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं है| यह देश की सामाजिक संरचना एवं राजनीतिक समीकरणों पर गहरा असर डालनेवाला मामला है।

जातिनिहाय जनगणना क्या है?
जातिनिहाय जनगणना का अर्थ- भारत में स्थित विभिन्न जातियों की जनसंख्या का गणन , विश्लेषण और जानकारी (डेटा) एकत्र करना है। ससल 1931 के बाद से भारत में जाति के आधार पर जनगणना नहीं हुई हैं। (SC/ST को छोड़कर)।यानी अनुसुचित जाती और अनुसुचित जनजाति की जनसंख्या!हर एक जाती की गनणा एवं सामाजिक,आर्थिक, सांस्कृतीक, शैक्षिक,साधन संसाधन,प्रतिनिधीत्व आदि की सरकारी गणना नहीं हुई है| ऐसे में यह डेटा न केवल पिछड़े वर्गों की सही स्थिति जानने के लिए ज़रूरी था| तथा विभिन्न क्षेत्रो में सब का विकास करने की नीति निर्धारण के लिए भी एक अहम आधार बन सकता था ।
मोदी सरकार ने यह निर्णय क्यों लिया?—-
1. सामाजिक न्याय को मजबूती देने की दिशा में कदम या कुछ और?
सरकार का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय को बनाने के लिए उस दिशा में लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, “हर तबके को बराबरी का मौका तभी मिलेगा जब हमें उनकी सही सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी होगी।”
2. OBC वर्ग की मांग पहले से थी—-
OBC तथा अन्य पिछडी जातीयों के संगठनों, नेताओं की वर्षों से यह मांग थी| और भारतीय जनता पार्टी तथा उंची मानी जाने वाली जातीयों का इसको विरोध था। इसके समर्थकों कि सरकार को OBC की सही संख्या पता होनी चाहिए ताकि आरक्षण एवं अन्य कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक ज़रूरतमंदों को मिले |
3. आनेवाले चुनावों की रणनीति?—
2024 के लोकसभा चुनावों में जातीय समीकरण खास कर उत्तर भारत में बड़े असरदार साबित हुए थे। अब जातिनिहाय जनगणना का समर्थन करके भाजपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह OBC मतदाताओं को अपनी ओर खिंचना चाहता हैं।
4. बिहार सरकार के निर्णय के प्रभाव का असर—-
बिहार सरकार जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (दोनों OBC) द्वारा राज्य में जातिनिहाय गणना की| उसके बाद से सामाजिक प्रश्न खडे हो गये|इस बात ने केंद्र की भाजपा सरकार को यह निर्णय लेने को विवश किया हैं
विपक्ष की प्रतिक्रियाएं क्या आई है?—
कांग्रेस पार्टी-

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे – “हम तो वर्षों से यह मांग कर रहे थे। सरकार ने अब जाकर हमारी बात मानी है। यह जनता की जीत है।”
राजद और जदयू की प्रतिक्रिया —

तेजस्वी यादव ने प्रतिक्रिया है—
“बिहार ने जो रास्ता दिखाया, वही केंद्र को अपनाना पड़ा। यह जनता की ताकत का नतीजा है।”
टीएमसी के ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया—

“हमें सिर्फ डेटा नहीं चाहिए, बल्कि उसके आधार पर नीति और बजट में हिस्सेदारी भी चाहिए,” ममता बनर्जी ने कहा।
समर्थन तथा आलोचना दोनों निकले है—
एक ओर समाजवादी विचारधारा वाले नेता,बहुजन विचारधारा वाले नेता और संगठन इसका स्वागत कर रहे हैं । जरुरी कदम बता रहे हैं । वहीं कुछ विशेषज्ञों का ये मानना है कि जाति आधारित आंकड़ों से सामाजिक विभाजन तथा राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।
संभावित प्रभाव क्या होंगे? —-
1. सरकारी योजनाओं की पुनःसंरचना करनी पडेगी—
सटीक जातिनिहाय आंकड़ों के आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य , आर्थिक आदी वंचित जातियों की योजनाओं को बेहतर ढंग से नये आधार एवं आयामों को सामने रखकर सशक्त बनाया जा सकता है।
2. आरक्षण व्यवस्था कितना पर असर होगा–
इस जनगणना के आंकडों के आधार पर OBC, EBC,तथा अन्य वर्गों के आरक्षण तथा योजनाओं में संशोधन किया जा सकता है।
3. राजनीतिक दलों की रणनीति में क्या बदलाव होंगे?—
जातीगत आंकड़े सामने आने के बाद विभिन्न राजकीय पार्टियां अपने टिकट वितरण, घोषणापत्र, गठबंधन की नीति में बदलाव लाना बिलकुल संभव हो सकती हैं।
आम जनता की दृष्टि से क्यों जरूरी है यह निर्णय?—
• हाशिये पर खड़े जाती समुदायों की सही संख्या एवं हालत सबके सामने आएगी।
• सारे क्षेत्रो में नीतियों में पारदर्शिता तथा जवाबदेही बढ़ेगी। सवाल पुणे जायेंगे |
• मोदीजी का विश्व प्रसिद्ध नारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ को अब धरातल पर लागू करना पडेगा |
चुनौतीपूर्ण पैलू कौन से है?—
• जातिगत डेटा को राजनीतिक हथियार बनाया जाना भी इससे तय है।
• धार्मिक तथा जातीय ध्रुवीकरण की होंगे |
• सामाजिक बंधुभावह बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती बनेगी।
निष्कर्ष क्या निकलते है?—
मोदी सरकार का जातिनिहाय जनगणना का फैसला एक ऐतिहासिक कदम निश्चित रुप से है। यह न केवल देश की सामाजिक संरचना को नये सिरे से रेखांकित करनेवाला हैं। बल्कि आने वाले कयी वर्षों में राजनीतिक विमर्श , सरकारी योजनाओं का आधार भी बनेगा। इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि क्या अब सरकार डेटा-संचालित सामाजिक न्याय की ओर बढ़ रही हैं? अगर है तो यह एक लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। लेकिन गिनती में ईव्हीएम के बारे में जिस तरह आक्षेप वाली जो बाते बताई जाती है ,उस तरह से इसमें भी होगा?
इससे भी जादा एक सवाल हमारे मन में आता है की जाती के अंत का सपना बाबासाहेब आंबेडकर ने जो देखा था वो कभी पुरा होगा या नहीं?